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स॒त्रा॒साहं॒ वरे॑ण्यं सहो॒दां स॑स॒वांसं॒ स्व॑र॒पश्च॑ दे॒वीः। स॒सान॒ यः पृ॑थि॒वीं द्यामु॒तेमामिन्द्रं॑ मद॒न्त्यनु॒ धीर॑णासः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

satrāsāhaṁ vareṇyaṁ sahodāṁ sasavāṁsaṁ svar apaś ca devīḥ | sasāna yaḥ pṛthivīṁ dyām utemām indram madanty anu dhīraṇāsaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒त्रा॒ऽसहम्। वरे॑ण्यम्। स॒हः॒ऽदाम्। स॒स॒वांस॑म्। स्वः॑। अ॒पः। च॒। दे॒वीः। स॒सान॑। यः। पृ॒थि॒वीम्। द्याम्। उ॒त। इ॒माम्। इन्द्र॑म्। म॒द॒न्ति॒। अनु॑। धीऽर॑णासः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:34» मन्त्र:8 | अष्टक:3» अध्याय:2» वर्ग:16» मन्त्र:3 | मण्डल:3» अनुवाक:3» मन्त्र:8


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - (यः) जो (सत्रासाहम्) सत्यों के सहनेवाले (वरेण्यम्) स्वीकार करने योग्य (सहोदाम्) बल के देने तथा (ससवांसम्) पाप और पुण्य का विभाग करनेवाले (स्वः) सुख (च) और (देवीः) उत्तम (अपः) प्राणों को (इमाम्) प्रत्यक्ष वर्त्तमान इस (पृथिवीम्) अन्तरिक्ष वा पृथिवी (उत) और इस (द्याम्) बिजुली को (ससान) अलग-अलग करै उस (इन्द्रम्) तेजस्वी पुरुष को (धीरणासः) उत्तम बुद्धि और संग्राम से युक्त लोग (मदन्ति) आनन्दित करते हैं, वह उनके (अनु) पीछे आनन्द को प्राप्त होवें ॥८॥
भावार्थभाषाः - जो असत्य का त्याग और सत्य का ग्रहण करने बल को बढ़ाने और प्रजा के सुख की इच्छा करनेवाला पुरुष बिजुली और पृथिवी आदि के गुणों का विद्या से विभागकर्त्ता हो, उसी परीक्षा करनेवाले जन को बुद्धिमान् वीर लोग प्राप्त होके आनन्द करते हैं और वे भी ऐसे ही पुरुष से आनन्द को प्राप्त हो सकते हैं ॥८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

यः सत्रासाहं वरेण्यं सहोदां ससवांसं स्वर्देवीरपश्चेमां पृथिवीमुतेमां द्यां ससान तमिन्द्रं धीरणासो मदन्ति स ताननुमदेदानन्देत् ॥८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सत्रासाहम्) यः सत्रा सत्यानि सहते स तम् (वरेण्यम्) स्वीकर्तुं योग्यम् (सहोदाम्) बलप्रदम् (ससवांसम्) पापपुण्ययोर्विभक्तारम् (स्वः) सुखम् (अपः) प्राणान् (च) (देवीः) दिव्याः (ससान) विभजेत (यः) (पृथिवीम्) अन्तरिक्षं भूमिं वा (द्याम्) विद्युतम् (उत) (इमाम्) वर्त्तमानाम् (इन्द्रम्) (मदन्ति) आनन्दन्ति (अनु) (धीरणासः) धीः प्रशस्ता प्रज्ञा रणः सङ्ग्रामो येषान्ते ॥८॥
भावार्थभाषाः - योऽसत्यत्यागी सत्यग्राही बलवर्धकः प्रजासुखेच्छुर्विद्युत्पृथिव्यादिगुणान् विद्यया विभाजकः स्यात् तमेव परीक्षकं धीमन्तो वीराः प्राप्याऽऽनन्दन्ति तेऽपीदृशादेवानन्दं प्राप्तुमर्हन्ति ॥८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - असत्य-त्यागी, सत्याग्रही, बलवर्धक, प्रजेच्या सुखाची इच्छा करणारा, विद्युत व पृथ्वी इत्यादींच्या गुणांचा विद्येने विभाजन करणारा अशा परीक्षकाला बुद्धिमान वीर लोक मिळतात व ते आनंद प्राप्त करतात. तसेच तेही अशाच पुरुषाकडून आनंद प्राप्त करू शकतात. ॥ ८ ॥